आरती ,पूजा का एक विशेष चरण जो की हर प्राथना कार्य के बाद विशेष सामग्री और पदार्थों के साथ की जाती है, आरती के समय तीन बार पुष्प अर्पित किए जाते है
आरती के समय घंटी , नगाड़े का विशेष रूप से पर्योग भी किया जाता है, इस के पीछे भी कई वैज्ञानिक कारन निहित हैं,
आरती के वास्ते पञ्च प्रदीप जलाना आवश्यक है ,आरती कर्पूर व् विषम संख्या की बाटी से की जाती है ,आरती पञ्च प्रकार से की जा सकती है
१ शंख में गंगा जल भर कर ,२ दीप से,३ कर्पूर से ४ पीपल के पत्तो से शरीर के पांचो अंग से..दोनों हाथ और पाँव और मष्तिक .
पञ्च प्राणों की प्रतीक आरती शरीर के पञ्च प्राणों की प्रतीक ही है घी की ज्योति आत्मा जी ज्योति का प्रतीक है.
आरती के लिए सामग्री के रूप में कलश और उसमें विशेष ओषिध सामिग्री भी डाली जाती हैं
कलश का रूप भी एक विशेष आकार का होता है , जिसमें कलश का बीच का खाली स्थान शिव का स्थान होता है , आरती के समय कलश से पूजा करते हुए हम शिव जी से एकाकार हो जाते हैं , समुंदर मंथन के समय भगवन विष्णु जी ने कलश धारण किया था , और सभी देवताओं का वास भी कलश में होता है , क्योंकि जल में देवताओं का वास माना जाता है,
नारियल की शिखाओं में सकारात्मक उर्जा का भण्डार होता है, आरती गाते हुए नारियल की शिखाओं की उर्जा कलश के जल में जाती है , और जल औषध और अमृत मई हो जाता है
कलश में सोना चाँदी या ताम्बा डालना त्याग का प्रतीक होता है, और इस धातु से सात्विक गुणों का समावेश जल में होता है , जल में सुपारी डालने से भी हमारे शरीर की रजोगुण को समाप्त कर देती हैं हमारे शारीर में अछे गुण धारण करने की शक्ति बड़ जाती है
पण की बेल जिसे नाग्बेल भी कहते हैं , यह भूलोक और ब्रह्मलोक को जोड़ने की कड़ी कहा जाता है , देव मूर्ति से उत्तपन सकारात्मक उर्जा पान के डंटल द्वारा प्राप्त की जाती है
और तुलसी दल में वातावरण को शुद्ध करने की उर्जा ले लिए ही तुलसा दल का होना अति आवश्यक मन जाता है.